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पर्यावरण क्लियरेंस देने में भारी फर्जीवाड़ा

केमिकल फैक्ट्री में खपाई नेता-अफसरों की काली कमाई, ऑक्शन-टेंडर में सांठगाठ, बिना वेरिफाई कंपनियों को पर्यावरण क्लियरेंस

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में केमिकल प्रोडक्शन अब धांधली की फैक्ट्री बन चुकी है। पता वही, प्रोपराइटर वही। नियमों का उल्लंघन कर कई बार उत्पादन क्षमता 700 तक बढ़ाई गई, ताकि रॉ मटेरियल लेने के ऑक्शन में सप्लाई का ठेका लेने और बैंक से लोन लेने में सहूलियत हो।

केमिकल प्रोडक्शन के कारनामे में पूरा सहयोग DIC और पर्यावरण क्लियरेंस के अफसरों का रहा। इन्होंने न सिर्फ नियमों की अनदेखी की, बल्कि जांच रिपोर्ट भी सामने नहीं आने दी। इस दौरान एक्सपांशन की शर्तों का पालन नहीं हुआ है।

इसके साथ ही 30 हजार की नौकरी करने वाला गोविंद मंडल 5 फैक्ट्रियों में डायरेक्टर है। जानकारों के मुताबिक इन फैक्ट्रियों में अफसरों नेताओं की अवैध कमाई को खपाया गया है, जो EOW की रडार पर है। इसके साथ ही CM विष्णुदेव साय भी इसकी शिकायत की गई है।

केमिकल फैक्ट्रियों के लिए रॉ मटेरियल के लिए रचा खेल

दुर्ग में भिलाई स्टील प्लांट के कोकओवन से बड़ी मात्रा में कोलतार निकलता है। ये केमिकल फैक्ट्रियों के लिए रॉ मटेरियल है। इसे ज्यादा मात्रा में ले सकें, इसके लिए पूरा खेल रचा गया। कुछ कंपनियों को बिना वेरिफाई किए ही पर्यावरण क्लियरेंस दे दिया गया।

केमिकल फैक्ट्री में बना पिच प्रोडक्ट एल्यूमिनियम फैक्ट्री के लिए कैथोड-एनोड का काम करता है। नैप्यालेन बॉल और पाउडर का भी बड़ा बाजार है। इसका व्यापार करोड़ों रुपए का है। इसके साथ ही सरकारी जमीन पर कब्जा कर डिपो भी बनाया गया है।

इन नियमों की हुई अनदेखी

• यह होना था: 2014 के राजपत्र के नियम अनुसार उत्पादन के लिए शुरुआत में मिली अनुमति को तभी बदला जा सकता है, जब जरूरी अहर्ताओं को पूरा करें। इसके नॉर्म्स में वाटर रिसोर्स कंजर्वेशन, फायर सेफ्टी जरूरी है।

• हुआ यहः डीआईसी ने परखे बिना ही अपनी ओर से अनुमति दी और अनुशंसा की।

• यह होना थाः विकास अनुमति शुल्क, भवन अनुज्ञा शुल्क, समझौता शुल्क के साथ नगर, ग्राम निवेश और स्थानीय शासन की सहमति जरूरी है। इसके बिना फैक्ट्री का संचालन संभव नहीं है।

• हुआ यहः पर्यावरण संरक्षण बोर्ड ने इसे वेरिफाई नहीं किया और क्लियरेंस दे दिया।

EOW की रडार पर फैक्ट्री और डायरेक्टर

प्लॉट 17N, हेवी इंडस्ट्रियल एरिया में एसएस उद्योग फैक्ट्री थी, जिसे गोविंद मंडल द्वारा खरीदने के बाद इसका नाम टेथिस कर दिया। उत्पादन क्षमता 2024 में 700% तक बढ़ी। जानकारों के मुताबिक अफसरों नेताओं की अवैध कमाई को खपाया है। EOW की रडार पर है।

हालांकि छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में कवासी लखमा के साथ ही गोविंद मंडल के यहां भी ACB/EOW रेड कर चुकी है।

कमेटी बनी, लेकिन रिपोर्ट दबा दी गई

इन तमाम मामलों की शिकायत हुई। इसकी जांच के लिए चार सदस्यीय टीम बनी, लेकिन रिपोर्ट दबा दी गई। इस टीम में आरके शर्मा, अनीता सावंत, सुरेश चंद और गेडाम शामिल थे। भास्कर ने कमेटी के दो सदस्यों से बात की। उन्होंने डिटेल देने से मना कर दिया। कहा-ऊपर रिपोर्ट भेज दी है।

केमिकल प्रोडक्शन के कारनामे में पूरा सहयोग DSC और पर्यावरण क्लियरेंस के अफसरों का रहा। बिना वेरिफिकेशन के क्लियरेंस। ये केमिकल डिपो की तस्वीर है।

पिच एल्युमिनियम फैक्ट्री में बड़े पैमाने पर होती है इस्तेमाल

कैमिकल फैक्ट्री में बनने वाले बड़े उत्पादों में पिच एल्युमिनियम कैथोड-एनोड के लिए इस्तेमाल होती है। वहीं नेप्थलॉन बॉल और पाउडर बनाया जाता है। साथ ही ऑयल और ब्लैक कार्बन पार्टिकल भी इसके प्रोडक्ट हैं। जो काफी महंगा बिकता है।

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