खुद राजीव का मेंढक कहा; छोटे बेटे के लिए बड़े को पार्टी से क्यों निकाला?
जनवरी 2013 की बात है। तमिलनाडु में वेल्लोर जिले के पट्टाली मक्कल में DMK कार्यकर्ताओं की एक सभा थी। तब के पार्टी चीफ और दक्षिण की राजनीति के दिग्गज करुणानिधि ने एक बड़ा ऐलान किया, 'यह सवाल लाजिमी है कि मेरे बाद DMK चीफ कौन होगा? आप सभी को यह नहीं भूलना चाहिए कि इसका जवाब स्टालिन है, लेकिन अभी मैं पार्टी को संभालने में सक्षम हूं, इसलिए स्टालिन को थोडे समय तक और इंतजार करना होगा।'
करुणानिधि का ऐलान उनके बड़े बेटे एमके अलागिरी को रास नहीं आया। वे पिता से बगावत पर उतर आए। 2G घोटाले में कनिमोझी का नाम आने के बाद स्टालिन UPA सरकार से गठबंधन तोड़ना चाहते थे, लेकिन अलागिरी इसके खिलाफ थे। करुणानिधि के कहने के बावजूद अलागिरी ने कई दिनों तक मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया। दोनों भाइयों में तकरार बढ़ती जा रही थी।
आखिरकार 25 जनवरी 2014 को करुणानिधि ने बड़े बेटे अलागिरी को पार्टी से सस्पेंड कर दिया। इसके पीछे की कहानी करुणानिधि ने खुद मीडिया को बताई थी। उन्होंने कहा, '24 जनवरी 2014, सुबह करीब 6 बजे एमके अलागिरी मेरे कमरे में आया। उसका चेहरा गुस्से से लाल था। वह छोटे भाई स्टालिन को लेकर मुझसे बात करने लगा। अचानक जोर से चिल्लाते हुए उसने कहा कि स्टालिन तीन या चार महीने में मर जाएगा। क्या कोई पिता अपने बेटे के बारे में ऐसे शब्द सुनना सहन कर सकता है?'
इस तरह लगातार 13 बार विधायक और 5 बार मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि ने बड़े बेटे को किनारे करके छोटे बेटे स्टालिन को पार्टी की कमान सौंपने का रास्ता साफ कर दिया। करुणानिधि के निधन के बाद स्टालिन पार्टी अध्यक्ष और फिर 2021 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने।
देश के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज 'परिवार राज' के नौवें एपिसोड में कभी चुनाव न हारने वाले करुणानिधि और उनके परिवार की कहानी...
गरीब परिवार में पैदा हुए करुणानिधि, 8वीं में पढ़ाई छोड़ी चेन्नई से करीब 300 किलोमीटर दूर तिरुक्कुवलाई नाम का एक छोटा सा गांव है। यहीं 3 जून 1924 को करुणानिधि का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। करुणानिधि दो बहनों के बाद पैदा हुए थे, इसलिए घर में उनका दुलार ज्यादा था।
पत्रकार वासंती अपनी किताब 'करुणानिधिः द डेफिनिटिव बायोग्राफी' में बताती हैं कि 14 साल की उम्र में करुणानिधि 8वीं कक्षा की पढ़ाई छोड़कर कोयंबटूर चले गए। वहां थिएटर के लिए स्क्रिप्ट लिखने लगे। इसी समय सोशल एक्टिविस्ट और नेता पेरियार ने आत्म सम्मान आंदोलन शुरू किया। करुणानिधि इसमें कूद गए। इसी दौरान पेरियार और अन्नादुरई की नजर करुणानिधि पर पड़ी।
1949 में जब सीएन अन्नादुरई ने DMK पार्टी बनाई तो करुणानिधि इसके पहले कोषाध्यक्ष बने। 1952 में करुणानिधि की लिखी फिल्म पराशक्ति रिलीज हुई तो उनका नाम पूरे दक्षिण भारत में प्रसिद्ध हो गया।
शादी के दिन हिंदी विरोधी आंदोलन में हिस्सा लेने घर से भागे
साल 1944 के आसपास करुणानिधि की मुलाकात साउथ सिनेमा के प्लेबैक सिंगर सीएस जयरामन की बहन पद्मावती अम्माय्यर से हुई। करुणानिधि अक्सर किसी न किसी बहाने पद्मावती से मिलने उनके घर जाते थे।
यह मुलाकात धीरे-धीरे प्रेम में बदल गई और 1946 में करुणानिधि और पद्मावती की शादी हो गई। कहा जाता है कि शादी के दिन करुणानिधि के घर बारात जाने की तैयारी हो रही थी। तभी उस मोहल्ले से होकर एक हिंदी विरोधी रैली गुजर रही थी।
जैसे ही करुणानिधि ने हिंदी भाषा के विरोध में नारा लगा रहे लोगों की आवाज सुनी, वे उस रैली में शामिल हो गए। करुणानिधि 'तमिल जिंदाबाद, हिंदी मुर्दाबाद' का नारा लगाने लगे। इस वजह से उनकी शादी में भी देर हो गई।
1948 में अचानक पद्मावती बीमार हुईं और उनका निधन हो गया। इसके चार साल बाद परिवार वालों ने दयालु अम्मल नाम की लड़की से उनकी दूसरी शादी करा दी। अम्मल और करुणानिधि दंपती को तीन बेटे एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके थामिझासरासु और एक बेटी सेल्वी हुई।
लगातार 14 बार विधायक बने, 5 बार CM रहे 1957 में पहली बार DMK के टिकट पर करुणानिधि विधानसभा चुनाव लड़े और जीते। इस वक्त पूरे दक्षिण भारत में हिंदी भाषा के विरोध में आंदोलन चल रहा था। इसी आंदोलन के सहारे DMK 1967 में पूर्ण बहुमत के साथ तमिलनाडु के सत्ता में आई। अन्नादुरई मुख्यमंत्री बने और करुणानिधि को राजमार्ग मंत्री बनाया।
इस वक्त दक्षिण भारत के स्टार एक्टर MG रामचंद्रन, करुणानिधि के दोस्त हुआ करते थे। दोनों सिनेमा की वजह से एक-दूसरे के करीब आए थे। इसके बाद उनके बीच गहरी दोस्ती हो गई थी। करुणानिधि के कहने पर ही MGR राजनीति में आए।
करीब 2 साल बाद 1969 में तमिलनाडु के CM अन्नादुरई की कैंसर से मौत हो गई। तमिल फिल्म स्टार और DMK नेता MGR की मदद से करुणानिधि तमाम सीनियर नेताओं को साइड लाइन करके CM बन गए।
1972 तक MGR तेजी से लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहे थे। उनकी बढ़ती लोकप्रियता से करुणानिधि परेशान होने लगे थे। उन्हें लगता था कि अगर MGR की लोकप्रियता इसी तरह बढ़ती रही तो वह उनके राजनीतिक वारिस हो सकते हैं। करुणानिधि ऐसा नहीं होने देना चाहते थे। उन्होंने MGR को पार्टी में कमजोर करने की कोशिश की।
आखिर में MGR ने करुणानिधि से बढ़ते राजनीतिक मतभेद की वजह से DMK से अलग एक नई पार्टी AIADMK बनाई। MGR के पार्टी छोड़ते ही DMK पर करुणानिधि की पकड़ और मजबूत हो गई।
जब मुख्यमंत्री करुणानिधि पर लगा जयललिता के चीरहरण का आरोप
25 मार्च 1989 की बात है। तमिलनाडु विधानसभा में बजट पेश किया जा रहा था। मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री एम करुणानिधि जैसे ही सदन में बजट भाषण पढ़ने लगे, नेता प्रतिपक्ष जयललिता और उनकी पार्टी के नेताओं ने हंगामा शुरू कर दिया।
चेन्नई एशियन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म के प्रोफेसर केएन अरुण के मुताबिक इस घटना के वक्त वह विधानसभा की प्रेस गैलरी में बैठे हुए थे। उन्होंने देखा कि जयललिता की पार्टी के एक विधायक ने करुणानिधि की तरफ एक फाइल फेंकी, जिससे मुख्यमंत्री का चश्मा गिरकर टूट गया। इसके बाद करुणानिधि के समर्थक और विपक्षी विधायकों के बीच हाथापाई होने लगी। स्पीकर ने कार्यवाही समाप्त कर दी और सदन स्थगित कर दिया, लेकिन सब कुछ यहीं खत्म नहीं हुआ।
हंगामा ज्यादा बढ़ता देख जयललिता सदन से बाहर जाने लगीं। तभी करुणानिधि के एक करीबी मंत्री दुरई मुरगन उनके सामने आ गए। मुरगन ने जयललिता को बाहर जाने से रोका और उनकी साड़ी खींची, जिससे उनकी साड़ी फट गई और वो खुद भी जमीन पर गिर गईं।
अपनी फटी हुई साड़ी के साथ जयललिता किसी तरह विधानसभा से बाहर आ गईं। यही वो दिन था जब जयललिता ने सदन से निकलते हुए कहा था कि वो मुख्यमंत्री बनकर ही इस सदन में वापस आएंगी, वरना कभी नहीं आएंगी।
1991 की शुरुआत में केंद्र सरकार ने आतंकी संगठन LTTE के साथ संबंधों का पता चलने की बात कहकर DMK सरकार को बर्खास्त कर दिया। राजीव गांधी की हत्या के कुछ सप्ताह बाद ही तनावपूर्ण माहौल में यहां विधानसभा चुनाव कराए गए। इस चुनाव में जयललिता को 224 सीटों पर जीत मिली। वहीं, DMK सिर्फ 7 सीटों पर सिमट गई। इस तरह जयललिता ने अपना वादा पूरा किया और वह राज्य की CM बनकर विधानसभा में हिस्सा लेने पहुंचीं।
राजीव गांधी को मेंढक बताकर करुणानिधि ने उड़ाया था मजाक
1985 के विधानसभा चुनाव की बात है। तब तमिलनाडु में दो बड़े नेता थे- करुणानिधि और एमजी रामचंद्रन। इस चुनाव में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी का गठबंधन एमजी रामचंद्रन की AIADMK के साथ हुआ।
MGR के विरोध में थे कभी उनके दोस्त रहे DMK के करुणानिधि। करुणानिधि के साथ जनता पार्टी और लेफ्ट का गठबंधन था।
कोयंबटूर की एक चुनावी रैली में राजीव गांधी ने करुणानिधि का मजाक उड़ाते हुए कहा कि विपक्षी दलों का हाल केकड़ों से भरी बाल्टी सा है। जैसे ही कोई रेंगकर बाहर आने की कोशिश करता है, बाकी के केकड़े उसे अंदर खींच लेते हैं।
करुणानिधि अपनी हाजिर जवाबी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अगली रैली में राजीव के इस तंज का जवाब दिया। वे बोले, केकड़ा अपनी घातक पकड़ के लिए जाना जाता है। हमारी पकड़ जनता पर है। इसलिए हमें केकड़े कहलाए जाने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन अगर हम केकड़ा हैं तो AIADMK और कांग्रेस का गठजोड़ मेंढक और चूहे के साथ जैसा है।
मेंढक चूहे को पानी में खींचेगा और चूहा मेंढक को जमीन पर। ऐसे में न उनकी जमीन पर पकड़ रहेगी न पानी में। तब आएगा एक बाज और एक ही झपट्टे में दोनों को खा जाएगा। ऐसा कहा गया कि करुणानिधि ने यहां बाज खुद को बताया था।
करुणानिधि परिवार की पार्टी और सत्ता में दबदबे की लड़ाई
2007 में करुणानिधि को पार्टी और सत्ता में दबदबा कायम करने की चुनौती उनके नाती दयानिधि मारन से मिल रही थी। दयानिधि रिश्ते में करुणानिधि के भांजे मुरासोली मारन के बड़े बेटे थे। वह पार्टी में एक गुट बनाकर खुद को राजनीतिक तौर पर मजबूत कर रहे थे। इसकी भनक करुणानिधि को लग चुकी थी। इसके बाद जो हुआ वो कुछ इस तरह है...
तारीख - 11 मई 2007, जगह- चेन्नई का आईलैंड ग्राउंड। एम करुणानिधि ने अपने चुनावी राजनीति के 50 साल पूरे करने पर एक शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया।
इसमें हिस्सा लेने उस वक्त के PM मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी पहुंची थीं। कार्यक्रम शुरू होने से कुछ देर पहले करुणानिधि, सोनिया को मंच के किनारे ले गए।
पत्रकार विनोद के. जोस करुणानिधि के करीबी के जरिए दावा करते हैं कि उस रोज करुणानिधि ने सोनिया से कहा था- 'दयानिधि मारन को केंद्रीय मंत्रालय से हटाना होगा। उसने हमें परेशान कर दिया है।' सोनिया बोलीं- 'चिंता मत करिए, आप जैसा कहेंगे वैसा ही होगा।'
दो दिन बाद ही 13 मई को करुणानिधि ने DMK पार्टी की एक बैठक बुलाई। 148 सदस्य वाले प्रशासनिक समिति ने करुणानिधि के नाती दयानिधि को अनुशासन तोड़ने के आरोप में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के लिए एक प्रस्ताव पास किया।
इसके बाद दयानिधि को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। दरअसल, मारन पर एयरसेल-मैक्सिस विवाद का आरोप लगा था और इसकी वजह से पार्टी की इमेज खराब हो रही थी। कहा जाता है कि पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे दयानिधि को साइड करने का करुणानिधि के पास ये सबसे अच्छा मौका था। इसीलिए उन्होंने मौका मिलते ही मारन को साइड करने का फैसला लिया था। ऐसा करके करुणानिधि ने स्टालिन के लिए रास्ता साफ कर दिया था।
करुणानिधि ने पत्नी के दबाव में बेटी को राजनीति में उतारा
पेशे से पत्रकार कनिमोझी तमिलनाडु की वीकली मैगजीन 'कुनगुमम' में काम करती थीं। वह अपने राज्य की महिलाओं, विकलांगों से जुड़े मुद्दे पर काम करती थीं।
अपनी दूसरी पत्नी और कनिमोझी की मां राजथी के कहने पर न चाहते हुए भी करुणानिधि ने 2007 में कनिमोझी को राज्यसभा सांसद बनाया। इस तरह उनकी बेटी कनिमोझी की राजनीति में एंट्री हुई।
जून 2008 में चेन्नई स्थित अमेरिका के वाणिज्य दूतावास में अधिकारी रहे डेनिस टी हॉपर ने कहा था कि करुणानिधि नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी कनिमोझी राजनीति में आए।
तमिलनाडु के बिजनेसमैन शिव प्रकाशराम के हवाले से डेनिस ने कहा कि DMK के भीतर करुणानिधि को चुनौती देने वाला कोई दूसरा नेता नहीं था। हालांकि, उनको असली चुनौती उनके परिवार से ही मिल रही थी।
दो बेटे एमके स्टालिन और एमके अलागिरी को राजनीति में आगे बढ़ते देख करुणानिधि की दूसरी पत्नी राजथी को जलन होती थी। इसी वजह से उसने जिद करके अपनी इकलौती बेटी को राज्यसभा का टिकट दिलवाया था। 4 साल बाद ही 2011 में 2G स्कैम मामले में कनिमोझी आरोपी बन गईं।
जब सोनिया की राजनीति में फंसकर पहली बार झुके करुणानिधि
साल 2011 की बात है। राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी। 2G स्कैम केस में उनकी बेटी कनिमोझी तिहाड़ जेल में बंद थीं। करुणानिधि अपनी बेटी से मिलने और कांग्रेस से सीट शेयरिंग पर बात करने 23 मई को दिल्ली पहुंचे। दक्षिणी भारत के तेज-तर्रार नेता करुणानिधि दिल्ली बहुत कम जाते थे। वह अक्सर अपने करीबी नेताओं के जरिए दिल्ली को मैसेज भेजा करते थे।
पिछले 22 साल से तमिलनाडु की राजनीति में अपनी पैठ मजबूत करने वाले करुणानिधि के बिना दिल्ली में कोई सरकार नहीं बनती थी। हालांकि, इस बार 2G स्कैम घोटाले के बाद हो रहे चुनाव में उनकी पार्टी आरोपों से घिरी हुई थी। DMK के लिए कांग्रेस ने सख्त रवैया अपना रखा था। ऐसे में कांग्रेस नेताओं से बातकर मामले को सुलझाने के लिए खुद करुणानिधि दिल्ली पहुंचे।
दिल्ली के तमिलनाडु भवन में DMK पार्टी के सभी मंत्रियों ने आकर करुणानिधि से मुलाकात की, लेकिन सोनिया गांधी से करुणानिधि की मुलाकात नहीं हुई। करुणानिधि ने कहा कि अभी मेरी बेटी की गिरफ्तारी हुई है, इसलिए सोनिया से मिलना इस वक्त सही नहीं है।
हालांकि, रात करीब 9 बजे उस वक्त के गृहमंत्री पी. चिदंबरम बिना किसी एस्कॉर्ट वाहन या सुरक्षा के अपनी निजी कार से तमिलनाडु भवन पहुंच गए। गाड़ी से उतरकर चिदंबरम सीधे करुणानिधि के कमरे में गए। करीब 30 मिनट की बातचीत के बाद चिदंबरम करुणानिधि के कमरे से निकले और अपने आवास लौट गए।
करुणानिधि अगले दिन दिल्ली से वापस चेन्नई लौट गए। उन्हें लगा कि चिदंबरम, सोनिया गांधी को 2G घोटाले में आगे की जांच पर रोक लगाने के लिए मना लेंगे। हालांकि, वह गलत साबित हो गए। दो दिन बाद ही CBI ने उनकी पार्टी के केंद्रीय मंत्री रहे ए. राजा को गिरफ्तार कर लिया।
कुछ ही हफ्ते में जांचकर्ताओं ने कनिमोझी और करुणानिधि की पत्नी दयालु अम्माल दोनों को समन जारी किया। परिणाम ये हुआ कि मार्च की शुरुआत में DMK को कांग्रेस की 63 सीटों की मांग मानने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो 2006 में हुए विधानसभा चुनाव से 15 सीटें कम थीं।
यह पहला मौका था, जब करुणानिधि खुद दिल्ली गए और उनकी यह यात्रा फेल हो गई।
'कौन हैं भगवान राम? वो किस इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट थे?'
2004 में अटल बिहारी के नेतृत्व वाली सरकार ने 3,500 करोड़ रुपए के सेतुसमुद्रम परियोजना को मंजूरी दी। इस योजना के जरिए सेतु को तोड़कर एक समुद्री रास्ता तैयार करना था, जिससे विदेश से बंगाल की खाड़ी आने वाले जहाजों को श्रीलंका का चक्कर नहीं लगाना पड़े। इस रास्ते को बनाने का मकसद समय, दूरी और ईंधन बचाना था।
अगले साल केंद्र की सरकार बदली और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। मनमोहन सिंह के हरी झंडी दिखाते ही योजना को लेकर विवाद शुरू हो गया। सेतुसमुद्रम विवाद पर सितंबर 2007 में करुणानिधि ने भगवान श्रीराम के वजूद पर ही सवाल उठा दिए।
उन्होंने कहा, 'लोग कहते हैं कि 17 लाख साल पहले कोई शख्स था, जिसका नाम राम था। कौन हैं वो राम? वो किस इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट थे? क्या इस बात का कोई सबूत है?'
बाद में उनके इस सवाल और बयान पर खासा बवाल हुआ था। BJP नेता लालकृष्ण आडवाणी ने उनसे बयान वापस लेने और मांफी मांगने की मांग की। करुणानिधि ने माफी मांगने से इनकार करते हुए आडवाणी को मंच पर डिबेट करने की चुनौती दी। उन्होंने कहा, 'मैंने रामायण लिखने वाले वाल्मीकि से ज्यादा तो कुछ नहीं कहा है, जो राम को शराबी बताते थे।'
करुणानिधि ने भगवान राम को एक काल्पनिक चरित्र करार दिया। साथ ही उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को कोट करते हुए कहा था कि रामायण आर्य और द्रविड़ों के बीच संघर्ष की कहानी है।
हिंदू पैदा होने के बावजूद करुणानिधि को दफनाया क्यों गया?
अगस्त 2018 में 94 साल की उम्र में DMK प्रमुख करुणानिधि का निधन हो गया। उनके बेटे एमके स्टालिन ने अपने पिता करुणानिधि के पार्थिव शरीर को दफनाने और स्मारक बनाने के लिए राज्य सरकार से चेन्नई के मरीना बीच पर जगह मांगी।
AIADMK की सरकार ने उनके पार्थिव शरीर को दफनाने के लिए गांधी मंडपम में वैकल्पिक जगह देने का फैसला किया। स्टालिन ने सरकार के फैसले के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दर्ज की।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मरीना बीच पर उनके पार्थिक शरीर को दफनाने के लिए जगह देने के निर्देश दिए। साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया है कि तमिलनाडु सरकार उनका मेमोरियल भी बनाए। करुणानिधि हिंदू धर्म में इसाई वेल्लालर जाति से आते थे।
इसके बावजूद उनके पार्थिव शरीर को दफनाया गया, क्योंकि द्रविड़ आंदोलन के बाकी बड़े नेताओं की तरह उन्होंने खुद को नास्तिक माना था। करुणानिधि ने 14 साल की उम्र में जस्टिस पार्टी से अपनी राजनीति शुरू की, उसके नेता पेरियार ब्राह्मण कर्मकांड और हिंदू धर्म की परंपरा का खुलकर विरोध करते थे।
करुणानिधि की राह पर तीसरी पीढ़ी के उदयनिधि... 2019 लोकसभा चुनाव से पहले स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। DMK ने उन्हें युवा विंग का प्रमुख बनाया, इसके बाद उदयनिधि ने एक ईंट हाथ में लेकर पूरे राज्य का दौरा किया। इस ईंट की ब्रांडिंग AIADMK-BJP सरकार के तहत AIIMS-मदुरै के अधूरे काम के सबूत के तौर पर की गई थी।
इसके बाद पूरे राज्य में उनकी छवि हीरो की बन गई। 2 साल बाद 2021 में वह पहली बार विधायक और फिर अपने पिता स्टालिन की सरकार में मंत्री बन गए। 2 सितंबर 2023 को सनातन धर्म पर दिए अपने बयान की वजह से वह चर्चा में आ गए।
उन्होंने कहा, 'सनातन धर्म लोगों को जाति और धर्म के नाम पर बांटने वाला विचार है। इसे खत्म करना मानवता और समानता को बढ़ावा देना है। जिस तरह हम मच्छर, डेंगू, मलेरिया और कोरोना को खत्म करते हैं, उसी तरह सिर्फ सनातन धर्म का विरोध करना ही काफी नहीं है। इसे समाज से पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए।'
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